Monday, February 20, 2012

Happy Maha Shivratri !!!

महाशिवरात्रि व्रतकी पद्धति व विधि

फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशीको महाशिवरात्रिका व्रत रखा जाता है । इस तिथिपर एकभुक्त रहें । चतुर्दशीके दिन प्रात:काल व्रतका संकल्प करें । सायंकाल शास्त्रोक्त स्नान करें । भस्म और रुद्राक्ष धारण करें । प्रदोषकालमें शिवजीके मंदिर जाएं । शिवजीका ध्यान करें । तदुपरांत षोडशोपचार पूजा करें । भवभवानीप्रीत्यर्थ (यहां भव यानी शिव) तर्पण करें । नाममंत्र जपते हुए शिवजीको एक सौ आठ कमल अथवा बिल्वपत्र अर्पण करें । पुष्पांजलि अर्पण कर, अर्घ्य दें । पूजासमर्पण, स्तोत्रपाठ तथा मूलमंत्रका जाप हो जाए, तो शिवजीके मस्तकपर चढाए गए फूल लेकर अपने मस्तकपर रखें और शिवजीसे क्षमायाचना करें । चतुर्दशीपर रात्रिके चारों प्रहरोंमें चार पूजा करनेका विधान है, जिसे यामपूजा कहा जाता है । प्रत्येक यामपूजामें देवताको अभ्यंगस्नान कराएं, अनुलेपन करें, साथ ही धतूरा, आम तथा बिल्वपत्र अर्पण करें । चावलके आटेके २६ दीप जलाकर देवताकी आरती उतारें । पूजाके अंतमें १०८ दीप दान करें । प्रत्येक पूजाके मंत्र भिन्न होते हैं; मंत्रों सहित अर्घ्य दें । नृत्य, गीत, कथाश्रवण आदि करते हुए जागरण करें । प्रात:काल स्नान कर, पुन: शिवपूजा करें । पारण अर्थात् व्रतकी समाप्तिके लिए ब्राह्मणभोजन कराएं । (पारण चतुर्दशी समाप्त होनेसे पूर्व ही करना योग्य होता है ।) ब्राह्मणोंके आशीर्वाद प्राप्त कर व्रत संपन्न होता है । बारह, चौदह अथवा चौबीस वर्ष जब व्रत हो जाए, तो उद्यापन करें ।





   

३. महाशिवरात्रिपर शिवजीका नामजप करनेका महत्त्व



अनेक संतोंने कहा है, कलियुगमें नामजप ही सर्वोत्तम साधना है । नामजप हम उठते-बैठते, जागते-सोते, आते-जाते भी कर सकते हैं । विश्वमें बढे हुए तमोगुणसे रक्षा होने हेतु तथा शिवरात्रिपर वातावरणमें प्रक्षेपित शिवतत्त्व आकर्षित करनेके लिए महाशिवरात्रिपर शिवजीका `ॐ नम: शिवाय' यह नामजप अधिकाधिक करें ।

४. शिवपूजाकी विशेषताएं 

पूजाके लिए कहां बैठें ?: आम तौरपर शिवमंदिरमें पूजा एवं साधना करनेवाले श्रद्धालुगण शिवजीकी तरंगोंको सीधे अपने शरीरपर नहीं लेते; क्योंकि इससे कष्ट होता है । शिवजीके मंदिरमें अरघाके स्रोतके ठीक सामने न बैठकर, एक ओर बैठते हैं; क्योंकि शिवकी तरंगें सामनेकी ओरसे न निकलकर, अरघाके स्रोतसे बाहर निकलती हैं ।

शिवपिंडीको ठंडे जल, दूध अथवा पंचामृतसे स्नान करवाते हैं । 


शिवपूजामें हलदी-कुमकुमका प्रयोग नहीं करते; भस्म तथा श्वेत अक्षतका प्रयोग करते हैं । 


पिंडीके दर्शनीय भागपर भस्मकी तीन समांतर धारियां बनाते हैं या फिर समांतर धारियां खींचकर उनके मध्य एक वर्तुल बनाते हैं । उसे शिवाक्ष अथवा योगाक्ष भी कहते हैं । शिवाक्षपर चावल, क्वचित गेहूं एवं श्वेत पुष्प चढाते हैं । 

शिवपिंडीकी पूर्ण प्रदक्षिणा न कर, अर्धचंद्राकृति प्रदक्षिणा करते हैं । अरघेके स्रोतको लांघते नहीं, क्योंकि वहां शक्तिस्रोत होता है । उसे लांघते समय पैर फैलते हैं, जिससे वीर्यनिर्मिति व पांच अंतस्थ वायुओंपर विपरीत परिणाम होता है । 

रुद्राक्ष: भगवान शिव निरंतर समाधिमें होते हैं, इस कारण उनका कार्य सदैव सूक्ष्मसे ही जारी रहता है । यह कार्य अधिक सुव्यवस्थित हो, इसके लिए भगवान शिवने भी रुद्राक्षकी माला शरीरपर धारण की है । इसी कारण शिव-उपासनामें रुद्राक्षका असाधारण महत्त्व है ।' किसी भी देवताका जप करने हेतु रुद्राक्षमालाका प्रयोग किया जा सकता है । रुद्राक्षमालाको गलेमें या अन्यत्र धारण कर किया गया जप, बिना रुद्राक्षमाला धारण किए गए जपसे हजार गुना लाभदायक होता है । इसी प्रकार अन्य किसी मालासे जप करनेकी तुलनामें रुद्राक्षकी मालासे जप करनेपर दस हजार गुना अधिक लाभ होता है ।

॥ ॐ नमः शिवाय ॥
नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
हर हर भोले नमः शिवाय

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